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अप्रैल 28, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इंतज़ार /intzar

इंतज़ार..  बैठे हैं कब से उसके तस्सवुर में आंखे बिछाएं कब तलक आएगी वो अपना दामन उठाये उसकी नज़रों से जो मुक्कमल हो जाये तड़पती रूह को सुकून सा मिल जाये जब वो आए तो कोई ना हो इस शामियाने में बस चाँद तारे ही चमकते रहे आसमानो में और क्या सुनाऊं किस्सा - ए - मोहब्बत का जब वो आए तो ये पल थम सा जाये मोहब्बत का आगाज हर तरफ हो जाये अब तो ख्वाहिश है कि  हर रोज ये मंजर आये उसके दीदार से ही ये नज़रे सुकून पाये  मुकम्मल हो मेरी ये दुआ खुदा भी उसको छोड़ जाये।