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सितंबर 23, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Safar....

Safar........  दुनिया कि इस भीड़ में न जाने कितने अजूबे हैै l एक तो हम हैं, बाकी सारी कायनात हैं  ll यूं तो चलने का मन नहीं करता, मगर अनजानी राहे , भीड़ में ही मिला करती है l     जीने का सलीका यहीं से मुकम्मल हो जाता है l अगर सफर ना होता मिलो का, तो मे न चलता l और बन जाता हिस्सा उसी भीड़ का l वो भीड़ जो नहीं देखती कभी किसी को,  आजमाईश का दौर है..........  जिसमे मयस्सर भी चुरा लिये जाते हैं  निकल भीड़ से इन्तिका  ढूँढू कहीं,,,  जहां बस मेरा ही इख्तियार हो l  😊 😊 😊 😊 

महफिल अब वो कहां.....

महफिल अब वों कहां......  लूप्त सी हो गई अब तो शायरों की महफ़िल आज के दोर मे l कौन लिखे, जब कोई पढनें को नहीं है मुसाफिर l सब तो लगे हुये हैं एक दूसरे को गिराने में, वक़्त किसके पास  है, डिजिटल युग में अल्फाज़ों को सीखने का l कॉपी पेस्ट का जमाना है, कातिबों  का नहीं l अगर मैं कहू कि मै खुद भी हूं इनमे शामिल, तो फर्क कहां पड़ता है, जमाना जब बदल रहा है तो इंसान को बदलने मे क्या हर्ज़ l हरकतें कर लेता हू मे भी थोड़ी बहुत, दोनों जमानो को मिलाकर, पर जल्दी ही संभल जाता हूं 😊😊😊

Sukun nhi kahi bhi....

Sukun nhi kahi bhi.... कौन कहता है गुलाम नहीं कोई इस जहां में। नाम नहीं रहा गुलामी का, मगर हर शख्स गुलाम है।  कोई मुलाजिम है, तो कोई एम्पलॉय है, तो कोई खिदमत करता है।  बन कर रह गए एक असीर।  अंग्रेज चले गए मगर अंग्रेजी  का तोहफा दे गये, 😊 😊  बच्चे भी अब तो अपनी भाषा से दरकिनार कर गये l दुनिया के जज्ब मे भ्रमित सा हो गए सब।  मालिक हो गए अपनी मर्ज़ी के, लेकिन वो बात नहीं।  भाग रहे हैं एक दूसरे से बगावत कर वजूद कायम करने को।  जमीर में भर गया उबाल इतना, अब वो सुकून कहां......

Badalta jamana

Badalta jamana....  मैं कुछ नज़्म लिखता हूं , बीते हुये जमाने के लफ्ज़ लिखता हूं।  कुछ बाते आज की भी, कभी कभी कह देता हूं l फरक बहुत है उस दौर का आज से, मानो तो फरक कुछ भी नहीं। लोग पहले भी थे पढ़ने के शोकिन, आज भी है, पर रूबरू नहीं। महसूस करते थे लोग पहले, अब औपचारिकता करते हैं। मोहब्बत  पहले भी होती थी,और आज भी, दिल पहले भी टूटते थे, और आज भी, सबाब का खुमार पहले भी था और आज भी,  होते थे मोहब्बत के पयाम नजाकत से, अब नजाकत तब्दील हो गयी तिश्नगी में।  याद करता हू, वो दिन जब कागज पर अपनी बातो को जीनत से सज्जल करते थे l अब कागज कलम की जगह कि- बोर्ड मशहूर हो गया l सफर मिलो का हो गया, लेकिन खत्म नहीं हुआ l                                  ..............

Dil ki chahat

Dil ki chahat  दिल की चाहत है कि,... तुझे कविता बना डालूं, लफ़्ज़ों की डोर से तुझे अजीम  बना डालूं । पढ़े जो तुझे कोई,... लबों से उसके तारीफ ही निकले, आंसु ना सही मगर.... नम जरूर हो जायें  l शोर हो जाए जमाने में सिर्फ तेरा, मगर शोक हो जाये सिर्फ मेरा l लम्हा ना हो मेरे लिए तुम्हारे पास, मगर लफ़्ज़ों में  याद आए मेरी l तुझे हर साख पर ऎसे उतार दु कि अख्ज हो जाए जमाना सारा l तेरी यादों को पन्नों पर सहूलियत से ऎसे उतार दु, कि लफ्ज़ भी बोल उठे मेरे फसाने को....... l चला गया तू दूर होकर मुझ से , शायद मेरे अल्फाज़ ही वापस ला दे तुझे   l

Sab acha lagtha h

Sab acha lagtha h.... ना दर्द होता है, ना बुरा लगता है l जो हो रहा है सब अच्छा लगता है l पहले दिखती थी, सब मे कितनी कमियां जो मिलता है अब अच्छा लगता है l मेने भी छुड़ा लिया जमाने से हाथ,  ज़्यादा दिन कोई कब अच्छा लगता है l दिल तू सब से मिल के भी खुश नहीं,  अकेले रहना मतलब अच्छा लगता है l है नहीं कोई मुकम्मल मंजिल,  फिर भी मिलों का सफर अच्छा लगता है ।  गुनाह नहीं है, मेरा कोई,  फिर भी गुनहगार होना अच्छा लगता है l चलते चलते थककर रुक जाता हू,  फिर भी चलना अच्छा लगता है l नहीं है दिल में कोई आरजू,  फिर भी चलना अच्छा लगता है 

Ek pal

Ek pal....  रुका नहीं , चल रहा हू हर साह तेरे लिये l गैर नहीं हुआ मे, बस थोड़ा सा मसरूफ हूं अभी l आजमाईश का दौर है मेरा, पर आकिबत तू है l अजीज है तू भरोसा रख  l कुछ दिन कि ख़लिश है  l इंतज़ार तो कर....... l🚗

Alfaz...

Alfaz.....  क्यू ना में हर सुबह को वैसे ही देखूं जैसे पहले देखा करता था। क्यूं ना मोसम का हाल वैसे  ही पूछूं, जैसे में पहले पूछा करता था। क्यूं ना मे बेवजह बातों पर हंसू जैसे में पहले हंसा करता था । क्यू ना में यू ही मोज करूं, जैसे में पहले किया करता था l क्यू ना में हर त्योहार का वैसे ही इंतज़ार करू, जैसे में पहले किया करता था l क्यू ना वैसे ही जीऊं, जैसे पहले जिया करता था l क्यू ना में वैसे ही रहूँ जैसे पहले रहा करता था ।