महफिल अब वों कहां......
लूप्त सी हो गई अब तो शायरों की महफ़िल आज के दोर मे l
कौन लिखे, जब कोई पढनें को नहीं है मुसाफिर l
सब तो लगे हुये हैं एक दूसरे को गिराने में,
वक़्त किसके पास है, डिजिटल युग में अल्फाज़ों को सीखने का l
कॉपी पेस्ट का जमाना है, कातिबों का नहीं l
अगर मैं कहू कि मै खुद भी हूं इनमे शामिल,
तो फर्क कहां पड़ता है,
जमाना जब बदल रहा है तो इंसान को बदलने मे क्या हर्ज़ l
हरकतें कर लेता हू मे भी थोड़ी बहुत, दोनों जमानो को मिलाकर,
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