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मई 5, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Mohabhat ka manjar /मोहब्बत का मंजर

भूल जा उन आंखो को जिसमे कभी प्यार था तुम्हारे लिए,  क्यूं खुद को तबाह कर रहा  उस फरेब दिल के लिए,  नज़राना देखकर इश्क़ मेहरबान होता था जिसका, उसी कातिल को क्यूं हमसफ़र बना रहा अपना छोड़ इस दिल के मिजाज को क्यूं आदत उसकी लगाता है छोड़ इस बेपरवाह सफर को जो पिघल जाता उसकी एक मुस्कुराहट को क्या मोहब्बत का वो कहर अपनी बर्बादी का वो मंजर फिर से देखना चाहता है