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अक्टूबर 14, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Suno na...

सुनो ना थोड़ा रुक जाओ ना मेरे लिए , मे थक चुका हूं बहुत, तुम साथ दो तो तुम्हारी सोहबत में चल सकता हू । तुम साथ रहोगे तो हिम्मत रहेगी मुझ में भी, वरना थक कर बैठ जाऊंगा मे यही कही । सुनो ना एक पल हाथ तो बढाओं ना मेरी तरफ, मुझे भी साथ ले लो ना । सफर ये मिलो का है, बाते करते करते तय कर लेंगे, कुछ तुम कहना, कुछ मे कहूंगा। जब कोई एक थक जायेगा तो दूसरा चलने को मजबूर करेगा, जब दोनों थक जाएंगे तो किसी छांव का सहारा ले, चाय की चुस्कियों के साथ इच्छाएं जाहिर केरेंगे अपनी, सुनो ना ..थोड़ा रुक जाओ ना मेरे लिए.... ***********, *, **,,,,, *************,,,,,, ******* तु बेबाक सा यू साँसों में शामिल हैं, महक अभी भी तेरी, रूह में शामिल हैं । यू तो महक जाता हूँ हर घड़ी, तेरे इंतज़ार में, मगर शामिल होने को तरस जाता हूँ। तु अश्क  निगाहों से बह बह कर निकल रहा है, वक्त गुज़र गया इतना फिर भी तु रगो मे बह रहा है । अब तो ले जा तेरी यादे, जो मे जी सकूं तेरे बिन । वरना रोज थोड़ा थोड़ा मर रहा हूं  ।

Gaw ki yade /गाँव की यादें

      Gaw ki yade ये जो बड़े बड़े शहरों में पत्थर के महल है,  उनमे वो सुकून कहां,  जो गांव के असियाने मे होता है ।  पत्थर के महलों में चुप्पी रहती है हर वक़्त, ना कोई बोलता है ना कोई सुनता है ।  दीवारें होती है रंग बिरंगी जो तन्हाइयों को मिटाने को मुमकिन नहीं।  वही गांव का मकान, मकान नहीं शोरगुल का सैलाब है, जहां तन्हा इंसान भी रिश्ते बना लेता है बहुत ।  होते हैं रोज नए नए किस्से, वक़्त यू चुटकियों में निकलते है हंसी ठिठोली में, ।  रोज रोज किसी से झगड़ा , तो किसी से मोहब्बत।  अब तो याद आता है वो गांव मुझे भी जहां पर ना दीवारें ना छत, बस खुला आसमान ।  , जिसको देखकर राते काट देते हैं सारी ।   कितना सुकून है गांव की महक में, जो सबको बांधे रखता है एक डोर मे,  वो गाव की महफ़िल, वो गांव के मेले, और वो गांव की अंधेरी गलिया, सब याद आता है मुझे,  इस शहर की चकाचौंध ने दिवाना दिया सब को, जो शहरों मे निकल चुके छत ढुंढने को,,,,,,,,

Rat ka andhera

Rat ka andhera..  मुझे रात का अंधेरा बड़ा अच्छा लगता है।  रात में ही होती चोरी, रात में ही हो चुप्पी सारी।  रात के अंधेरे में ही होती है बाते गुप्त सारी,  दिन के उजाले से बेहतर है रात का अंधेरा ।  ना शरम होती है ना हया होती है, बस मुलाकातें होती हैं । देखता रहता हूँ वक़्त बार- बार कि कही रात न निकल जाये ।  कोई लम्हा न छूट जाये, काम कोई अधूरा न रह जाएं तलाश रहती है, उस रात के अंधेरे की हर वक़्त, जब कोई नहीं देख पाता मुझे , बस चुपके से निकल जाता हूँ अंधेरे में  बनकर अंधेरे का ही साया ।