Gaw ki yade
ये जो बड़े बड़े शहरों में पत्थर के महल है,
उनमे वो सुकून कहां,
जो गांव के असियाने मे होता है ।
पत्थर के महलों में चुप्पी रहती है हर वक़्त, ना कोई बोलता है ना कोई सुनता है ।
दीवारें होती है रंग बिरंगी जो तन्हाइयों को मिटाने को मुमकिन नहीं।
वही गांव का मकान, मकान नहीं शोरगुल का सैलाब है, जहां तन्हा इंसान भी रिश्ते बना लेता है बहुत ।
होते हैं रोज नए नए किस्से, वक़्त यू चुटकियों में निकलते है हंसी ठिठोली में, ।
अब तो याद आता है वो गांव मुझे भी जहां पर ना दीवारें ना छत, बस खुला आसमान ।
, जिसको देखकर राते काट देते हैं सारी ।
कितना सुकून है गांव की महक में, जो सबको बांधे रखता है एक डोर मे,
वो गाव की महफ़िल, वो गांव के मेले, और वो गांव की अंधेरी गलिया, सब याद आता है मुझे,
इस शहर की चकाचौंध ने दिवाना दिया सब को, जो शहरों मे निकल चुके छत ढुंढने को,,,,,,,,

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