Alfaz..
कोई मुझे मजार कहे , कोई कहे खुदा
कोई कहे पत्थर तो कोई कहे देवता l
मगर मे खुद भूल चुका कि मे कोन हू l
मे एक मिट्ठी का पुतला था, जिसमे एक रूह बस्ती थी,
जब उसने साथ छोड़ दिया, तो सभी ने साथ छोड़ दिया l
दूर हो गए सब मुझ से , ये कहकर कि ये तो एक लाश/मुर्दा है, l
लाकर दफन कर दिया मुझे इस माटी की गोद में, जहा मेरे सारे सपने चूर चूर हो गए l
जो मुझे अपना अपना कहकर थकते नहीं थे, उन्ही लोगो ने मिट्ठी की तह में छुपा दिया मुझे l
चले गए सब मुझे अकेला छोड़कर उस सुनसान कब्र में जहा मेरे शरीर का कण कण होने को हैं l
मे भी कितने सुकून से सोया वहां पर, जहा न कोई अपना न कोई पराया, ना डर ना चिंता, ना सुख ना दुख l
मेरी रूह भी अब तो..... किसी और का अस्तित्व बनाने को मशरूफ थी
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें