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अक्टूबर 28, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तेरी महक

Teri mahak जाने कहा से तेरे शहर में ये हवाऐ चलने लगी,  जो अरमानों को जगा रही है होले होले l एहसास दिला रही है मुझको तेरे होने का  चलते चलते फिर से वही खुश्बू महसूस कर रहा हूं जिसको बरसो पहले भूला आया मे l दूर हूं तुझ से फिर पास क्यू आ रहा हू,  जो नहीं करना चाहता वही क्यू करने जा रहा हूं।  भीगे भीगे मौसम में अश्क मिलाए थे  गैरो के लिए ,  उसकी महफिल में सितारे सजाए थे कभी।  लौट के तन्हा आया कारवां बनाने को,, फिर ये हवा क्यू सताये मुझको  l है नहीं अब  मुझ पर कोई कर्ज बाकी, जाने से पहले सब चुका आया उसको l राख बन गया  मोहब्बत मे, बस उसी राख में चिंगारी लगाने आया हूँ    जो अतीत है मेरा, नये मुकाम से दफन करने आया हूँ  l हवाओं में घुलकर महक उसकी हर  फिज़ा में बह रही है, मगर दूर रहना चाहता हूं  l    वो लम्हे जो तेरी सोहबत में बिताये, याद नहीं करना चाहता में, बस.......  खुद को साबित करना चाहता हूं.........

उधार से दूरी

उधार से दूरी  उधार देकर पहले ही पछताया, 20 दिन बोल 8 महीने  लगाया । ना दूँगा तुमको उधार मे एक रुपया भी, पेसे के चक्कर मे बहुत घुमाया तुमने , रोज रोज नए बहाने पेसे न देने के। तारिक पे तारिक उधारी चुकाने की, रोज तुम्हारी चोखट पे भिक्षु की भांति आना, रुपया मांगाना।  लज्जा सी महसूस होती खुद को अब तो, कितने फसाने हुये, कितनी बेकारी हुई। फिर भी कुछ हाथ न लगा, कोशिश की गुस्से से भी मगर बात न बन पाती, फिर मोहब्बत का सहारा लिया,  उसको कितने दिन प्यार से समझाया, पूरा ना सही तो आधा देने को कहा, मगर कोई फायदा न हुआ। नियत खराब हो गई उसकी, लालच से निगाहे भर गई, होता पास में गर रुपया तो भी निकाल नहीं पाता कुछ पैसा। , टाइम बित गया कितना पर उसके दिल ने उधार चुकाना गवारा ना समझा,  धीरे धीरे शरम के मारे में भी बेहाल हुआ , छोड़ उसको रिस्ता भी दरकिनार कर लिया। तौबा कर लिया ऎसे लोगो से, जो प्यार से बोलकर उधार लेते हैं, और जब देने की बारी हो तो सिर चढते है । आज आया वो मेरे पास फिर से उधार लेने को, हाथ जोड़ लिए दोनों, कह दिया भाई कुछ खाना पीना कर लीजिए मगर उधा...