Teri mahak जाने कहा से तेरे शहर में ये हवाऐ चलने लगी, जो अरमानों को जगा रही है होले होले l एहसास दिला रही है मुझको तेरे होने का चलते चलते फिर से वही खुश्बू महसूस कर रहा हूं जिसको बरसो पहले भूला आया मे l दूर हूं तुझ से फिर पास क्यू आ रहा हू, जो नहीं करना चाहता वही क्यू करने जा रहा हूं। भीगे भीगे मौसम में अश्क मिलाए थे गैरो के लिए , उसकी महफिल में सितारे सजाए थे कभी। लौट के तन्हा आया कारवां बनाने को,, फिर ये हवा क्यू सताये मुझको l है नहीं अब मुझ पर कोई कर्ज बाकी, जाने से पहले सब चुका आया उसको l राख बन गया मोहब्बत मे, बस उसी राख में चिंगारी लगाने आया हूँ जो अतीत है मेरा, नये मुकाम से दफन करने आया हूँ l हवाओं में घुलकर महक उसकी हर फिज़ा में बह रही है, मगर दूर रहना चाहता हूं l वो लम्हे जो तेरी सोहबत में बिताये, याद नहीं करना चाहता में, बस....... खुद को साबित करना चाहता हूं.........
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