उधार से दूरी
उधार देकर पहले ही पछताया, 20 दिन बोल 8 महीने लगाया ।
ना दूँगा तुमको उधार मे एक रुपया भी, पेसे के चक्कर मे बहुत घुमाया तुमने , रोज रोज नए बहाने पेसे न देने के।
तारिक पे तारिक उधारी चुकाने की, रोज तुम्हारी चोखट पे भिक्षु की भांति आना, रुपया मांगाना।
लज्जा सी महसूस होती खुद को अब तो, कितने फसाने हुये, कितनी बेकारी हुई।
फिर भी कुछ हाथ न लगा, कोशिश की गुस्से से भी मगर बात न बन पाती, फिर मोहब्बत का सहारा लिया,
उसको कितने दिन प्यार से समझाया, पूरा ना सही तो आधा देने को कहा, मगर कोई फायदा न हुआ।
नियत खराब हो गई उसकी, लालच से निगाहे भर गई,
होता पास में गर रुपया तो भी निकाल नहीं पाता कुछ पैसा। ,
टाइम बित गया कितना पर उसके दिल ने उधार चुकाना गवारा ना समझा,
धीरे धीरे शरम के मारे में भी बेहाल हुआ , छोड़ उसको रिस्ता भी दरकिनार कर लिया।
तौबा कर लिया ऎसे लोगो से, जो प्यार से बोलकर उधार लेते हैं, और जब देने की बारी हो तो सिर चढते है ।
आज आया वो मेरे पास फिर से उधार लेने को, हाथ जोड़ लिए दोनों, कह दिया भाई कुछ खाना पीना कर लीजिए मगर उधार तुमको ना मिलेगा ,
एक बार फंस चुका तुम्हारे जाल में, दुबारा में ना फसुंगा

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें