Badalta jamana....
मैं कुछ नज़्म लिखता हूं , बीते हुये जमाने के लफ्ज़ लिखता हूं।
कुछ बाते आज की भी, कभी कभी कह देता हूं l
फरक बहुत है उस दौर का आज से, मानो तो फरक कुछ भी नहीं।
लोग पहले भी थे पढ़ने के शोकिन, आज भी है, पर रूबरू नहीं।
महसूस करते थे लोग पहले, अब औपचारिकता करते हैं।
मोहब्बत पहले भी होती थी,और आज भी,
दिल पहले भी टूटते थे, और आज भी,
सबाब का खुमार पहले भी था और आज भी,
होते थे मोहब्बत के पयाम नजाकत से,
अब नजाकत तब्दील हो गयी तिश्नगी में।
याद करता हू, वो दिन जब कागज पर अपनी बातो को जीनत से सज्जल करते थे l
अब कागज कलम की जगह कि- बोर्ड मशहूर हो गया l
सफर मिलो का हो गया, लेकिन खत्म नहीं हुआ l
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