इश्क़ ishq
कोई नहीं ऎसा जो मोहब्बत ताउम्र करे,
कभी न कभी तो दिल बहक जाता है
किसी न किसी से।
बंधन को ठुकराकर आजादी चाहता है इश्क़,
मगर एक नहीं हज़ारों पाना चाहता है इश्क़।
गुनाह है, ख़ता है, लापरवाह है इश्क़,
फिर क्यूं बार- बार दोहराना चाहता है इश्क़।
आंखों में रोशनी के सपने लिये
चलना चाहता है इश्क़,
फिर भी बार बार अंधेरों के सामने
हार जाता है इश्क़।
बेबस, लाचार, मजबूर है इश्क़,
मगर हुस्न के आगे परेशान हैं इश्क़।
सब खुश हो जाते हैं पाकर ये इश्क़,
जन्नत तो नहीं जहन्नुम होता ये इश्क़।
किसी की हां से शुरू होता ये इश्क़,
और दिल टूट जाने से बिखर जाता ये इश्क़।
- न जाने कितनी कुर्बानी देनी पड़ती है इश्क़ में,
फिर भी आखि़र में टूट जाता है इश्क़।
फितूर है इश्क़, बेबस है इश्क़,
मौत का मंजर है इश्क़, हालात है इश्क़



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