Kese kar lu yakin tera
तुमको कितनी बार कहा, दूर रहा करो मुझ से,
तुम्हारी परछाई भी तकलीफ देती है ।
लगता है जैसे कोई फिर से मुझे बांधना चाहता है,
अपने हुस्न के जाल में ।
अजीज नहीं है तू मेरा जो फिकर रहे मुझको तेरी,
गैरो के गले लगकर हमनशी मुझे बनाने को चले।
गलत है ये इंसाफ तेरा कि गम मे मुझे चुनती हो ,
कभी कुछ नहीं चाहा तुमसे मोहब्बत के सिवा,
और तुमने मोहब्बत का नाम ही खराब कर दिया।
आंख कभी नम नहीं हुई किसी की बेवफ़ाई से,
मगर आज सुख जाने का इंतज़ार करती हैं ।
जब तुम्हें शोहरत मिली तो एक पल भी नहीं सोचा,
प्यार भूला दोलत को चुना तुमने.....
जब भर गया तुम्हारे हुस्न से जी गैरो का तो निकाल फेका,तुम्हें एक कांटे की तरह ।
अब तुम लोटकर आए हो अतीत के साये में, तो केसे कर लु यकीन तेरा,
तू ही बता केसे कर लु यकीन तेरा ।

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें